हूँ जी रही मैं ,खुश हूँ ये ,जिस तिस से कहला के !
क्यूँ कर दिया परदेसी ,बाबा ,दुनियां में ला के ?
हम बेटियों का ही पता ,क्यूँ कर बदलता है ?
दुनियां बदल जाती हमारी , पीहर से जा के !
थे रुठते जो घर में , हर कोई मनाता था ,
ससुराल में तो हक़ नहीं , रुठे भी दिखला के !
आयी जो बरसों बाद मैं , तो सब लिपट रोयें ,
मैं हँस रही थी , अपने रोते दिल को बहला के !
बस रो लिया ,मुस्का लिया ,वो कुछ नहीं बोला ,
बाबुल ने प्यार कर लिया , बालों को सहला के !
हर साल ही बाबा मुझे तुम, घर बुलाओ ना ,
भर दूँगी घर बचपन से मैं , हर साल यूँ आ के !
क्यूँ कर दिया परदेसी ,बाबा ,दुनियां में ला के ?
हम बेटियों का ही पता ,क्यूँ कर बदलता है ?
दुनियां बदल जाती हमारी , पीहर से जा के !
थे रुठते जो घर में , हर कोई मनाता था ,
ससुराल में तो हक़ नहीं , रुठे भी दिखला के !
आयी जो बरसों बाद मैं , तो सब लिपट रोयें ,
मैं हँस रही थी , अपने रोते दिल को बहला के !
बस रो लिया ,मुस्का लिया ,वो कुछ नहीं बोला ,
बाबुल ने प्यार कर लिया , बालों को सहला के !
हर साल ही बाबा मुझे तुम, घर बुलाओ ना ,
भर दूँगी घर बचपन से मैं , हर साल यूँ आ के !
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