तुझे बस आईना दिखलाया , इतना खीज नहीं !
दिखेगी भी नहीं , गंर, तन पे है , कमीज नहीं !
मुझे ग़ज़लों की नज़र से ही , पहचाना करो ,
कि मैं शक्ल से , पहचान वाली चीज नहीं !
किसी की फिक्र में मिलता हूँ , खुशनसीबी मेरी ,
किसी भी जिक्र में रहने की ,है तमीज नहीं !
वो रोया , आँखें मेरी , आंसुओं से भर आई ,
उसी पे ग़ज़ल लिखूं , इतना बदतमीज नहीं !
दिखेगी भी नहीं , गंर, तन पे है , कमीज नहीं !
मुझे ग़ज़लों की नज़र से ही , पहचाना करो ,
कि मैं शक्ल से , पहचान वाली चीज नहीं !
किसी की फिक्र में मिलता हूँ , खुशनसीबी मेरी ,
किसी भी जिक्र में रहने की ,है तमीज नहीं !
वो रोया , आँखें मेरी , आंसुओं से भर आई ,
उसी पे ग़ज़ल लिखूं , इतना बदतमीज नहीं !
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