SATURDAY, NOVEMBER 15, 2014
tanu thadani तनु थदानी चलो इक बार जी के देखते हैं
ये मेरी नींद भी तब तक, मुकम्मल हो नहीं पाती !
प्रिय मेरी , मेरे सपनों में , जब तक आ नहीं जाती !
मेरी किस्मत भी तो इक कील है,जीवन फटी पतलून,
जिसे अक्सर बचाता हूँ , मगर वो कील चढ़ आती !
खुदा ने सब बनाया ठीक, बनाया दिल मगर ये क्यूँ ?
जहाँ यादें सदा फंसती , मगर सांसे निकल जाती !
तुम्हारे पास भी परिवार था , था पास मेरे भी ,
तुम्हारा प्यार ही तो है , जो सबको छोड़ के आती !
हमारे पग , हमारे मैं के , लंबे , राह में भटके ,
जुबां पे नीम की खेती , हमें क्या खाक समझाती ?
नगाड़े जब बजे दूरी के , तब इक मौन सोता था ,
उमर के इक धमाके ने , बनाया फिर हमें साथी !
चलो दिमाग की खेती में हम , माफी उगाते हैं ,
चलो इक बार जी के , देखते हैं , फूल की भाँति !
प्रिय मेरी , मेरे सपनों में , जब तक आ नहीं जाती !
मेरी किस्मत भी तो इक कील है,जीवन फटी पतलून,
जिसे अक्सर बचाता हूँ , मगर वो कील चढ़ आती !
खुदा ने सब बनाया ठीक, बनाया दिल मगर ये क्यूँ ?
जहाँ यादें सदा फंसती , मगर सांसे निकल जाती !
तुम्हारे पास भी परिवार था , था पास मेरे भी ,
तुम्हारा प्यार ही तो है , जो सबको छोड़ के आती !
हमारे पग , हमारे मैं के , लंबे , राह में भटके ,
जुबां पे नीम की खेती , हमें क्या खाक समझाती ?
नगाड़े जब बजे दूरी के , तब इक मौन सोता था ,
उमर के इक धमाके ने , बनाया फिर हमें साथी !
चलो दिमाग की खेती में हम , माफी उगाते हैं ,
चलो इक बार जी के , देखते हैं , फूल की भाँति !
No comments:
Post a Comment