जिस दिन ग़ज़लें मेरी तुमको , एक चिकोटी काटेगी !
दुनियां से तब अलग दिखोगे , मौन तुम्हारा छांटेगी !
पहले इंसा बन जाओ,फिर हिन्दू-मुस्लिम बन जाना ,
अच्छी फितरत ही खुशियों से , रूह तुम्हारी पाटेगी !
भले पकाओ विष जीवन भर, याद रखो संतान तेरी ,
तय है जो भी पका मिलेगा , खायेगी व चाटेगी !
झरने - पंक्षी सुर को बांटे , हवा बाँटती जीवन है ,
जिस दिन हो जाओगे इनके , खुशी तुम्हें ये बांटेगी !
चलो तुम्हें जन्नत दिखलाऊं , जो तेरे ही घर में है ,
जन्नत वो ,जब दुःख आयेगा , तुम्हें हौंसला माँ देगी !
दुनियां से तब अलग दिखोगे , मौन तुम्हारा छांटेगी !
पहले इंसा बन जाओ,फिर हिन्दू-मुस्लिम बन जाना ,
अच्छी फितरत ही खुशियों से , रूह तुम्हारी पाटेगी !
भले पकाओ विष जीवन भर, याद रखो संतान तेरी ,
तय है जो भी पका मिलेगा , खायेगी व चाटेगी !
झरने - पंक्षी सुर को बांटे , हवा बाँटती जीवन है ,
जिस दिन हो जाओगे इनके , खुशी तुम्हें ये बांटेगी !
चलो तुम्हें जन्नत दिखलाऊं , जो तेरे ही घर में है ,
जन्नत वो ,जब दुःख आयेगा , तुम्हें हौंसला माँ देगी !
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