जो इंसान हैं चाहत कभी , मरनी ना चाहिये !
करो जो इश्क तो फिर आत्मा , डरनी ना चाहिये !
कई काबिल निकम्मे क्यूँ हुये , बर्बाद क्यूँ हुये ,
भला क्यूँ आंखें आखिर इश्क में ,पड़नी ना चाहिये !
ये मेरी जिंदगी अकेले मिलती , क्यूँ नहीं मुझसे ,
बहुत सी बातें सरेआम तो , करनी ना चाहिये !
गिलों के कप में हो शिकवे , पियुंगा लाख हो कड़वे ,
गिलों के कपों में तो जिद़ कभी , भरनी ना चाहिये !
ना पूछो खेलता क्यूँ मैं यहाँ , तुकबंदियों के संग,
कोई भी आह दिल में देर तक, सड़नी ना चाहिये !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें