पत्थर पूजें , कृष्ण को माने , मन में मीरा भी गाये !
लेकिन शर्म जो नहीं नयन में, प्रेम जनम कैसे पाये ?
लाखों मीटर खोदा मैने, हर इक दिल को कलयुग में ,
प्रेम मिला न रत्ती भर भी , मिलें थे पत्थर मुँह बाये !
जय माता दी अल्लाह अल्लाह,कहते कहते जब लड़ते,
प्रेम ही कटता,प्रेम ही मरता ,घर वापस बस तन आये !
जीवन की रफ्तार तेज है , रौंद प्रेम आगे बढ़ते ,
जाना कहाँ है नहीं है निश्चित, कैसे कहाँ पे रुक जाये ?
सत्संग से कोठे तक वाले, शोध पत्र में खोज लिये ,
जिक्र प्रेम का अलग अलग था , परिभाषा में दर्शाये !
हमें पढ़ाना प्रेम है लेकिन, शक्ल प्रेम की भूल गयें ,
भावी नस्ल में प्रेम को कैसे , बतलाये ओं समझाये !
प्रेम की खेती कर भी ले हम, लेकिन बीज कहाँ बंधु,
चलो समर्पण बोतें हैं फिर, शायद प्रेम ही उग आये !
--------------------------------- तनु थदानी
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