क्यूँ घूमते, हो कर बड़े , अपना अहम् ले हाथ में !
पिटते रहें, खुद ही से हम, फंसते खुद ही के घात में !
जब कद बढ़ा, तो दिल हमारा,क्यूँ सिकुड़ छोटा हुआ,
सिर को फंसाओ मत अरे , अब दिल की बात बात में !
हम रौशनी में डूब के , अंधे बने , होना ही था ,
सब लुट गया , जो था जमा , फिर उम्र वाली रात में !
ब्यापारियों की नस्ल में , हम आदतन ही ढ़ल रहें ,
क्यूँ भूलते , कि खुश थे हम, मासूमियत की जात में !
होटल गयें कभी नहीं , अच्छा हुआ गरीब थें ,
हमने तो लूटा है मजा , संग मां के दाल - भात में !
मुझको बना मालिक, जहाज़ों का ,भले कागज के ही ,
बचपन मेरे तू लौट आ , किलकारियों के साथ में !
पिटते रहें, खुद ही से हम, फंसते खुद ही के घात में !
जब कद बढ़ा, तो दिल हमारा,क्यूँ सिकुड़ छोटा हुआ,
सिर को फंसाओ मत अरे , अब दिल की बात बात में !
हम रौशनी में डूब के , अंधे बने , होना ही था ,
सब लुट गया , जो था जमा , फिर उम्र वाली रात में !
ब्यापारियों की नस्ल में , हम आदतन ही ढ़ल रहें ,
क्यूँ भूलते , कि खुश थे हम, मासूमियत की जात में !
होटल गयें कभी नहीं , अच्छा हुआ गरीब थें ,
हमने तो लूटा है मजा , संग मां के दाल - भात में !
मुझको बना मालिक, जहाज़ों का ,भले कागज के ही ,
बचपन मेरे तू लौट आ , किलकारियों के साथ में !
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