आँखें सपने भर लायी !
नेताओं ने लोरी गायी !
देश लुटा चप्पे - चप्पे ,
कौन करेगा भरपाई ?
लाभ हानि ही पढ़ा लिखा,
फिर अपनी आयु खायी !
इज्जत केवल रस्म बनी ,
ये कैसी कालिख छायी ?
बोयी थी खामोशी फिर,
चींखे कैसे उग आयी ?
मौसम वोट का क्यूँ आया ?
गली गली है घबरायी !!
नेताओं ने लोरी गायी !
देश लुटा चप्पे - चप्पे ,
कौन करेगा भरपाई ?
लाभ हानि ही पढ़ा लिखा,
फिर अपनी आयु खायी !
इज्जत केवल रस्म बनी ,
ये कैसी कालिख छायी ?
बोयी थी खामोशी फिर,
चींखे कैसे उग आयी ?
मौसम वोट का क्यूँ आया ?
गली गली है घबरायी !!
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