क्या कहूँ कि कैसा मैंने , ऐब पाला है !
हर ग़ज़ल में मैंने अपना ,दिल निकाला है !
मैं परेशां था कि मुझको , दिख नहीं रहा ,
क्यूँ समझ आया नहीं , चश्मा ही काला है !
कुछ नहीं अब स्वाद, जिंदगी में आ रहा ,
मुँहलगा सा मुँह में मेरे , एक छाला है !
घर समाजवादियों का , देख मैं हैरान,
समाजवाद ए टी एम सा , कर जो डाला है !
गिध्द ने रो कर कहा ,संसद में ,कि उसका,
देश के नेताओं ने , छीना निवाला है !
हो रही जो कम गरीबी , क्यूँ नहीं दिखती ?
सरकार के रिकार्ड में कुछ, गड़बड़झाला है !
रुपये कमाये तीस तो , सरकार चिल्लाई,
वो कहाँ गरीब , वो तो , भेष वाला है !
सरकार बदलने से होगा , कुछ नहीं यहाँ ,
हम दिलों से सड़ चुके , ज़ुबां पे ताला है !
हम खुद ही से शुरुआत,आखिर क्यूँ नहीं करते ?
क्या कोसने से दूसरा , सुधरने वाला है ??.
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