क्या हम इंसान थें , या हिन्दू मुस्लिम, क्या बतायेंगे ?
हम अपने बच्चों को , जाने से पहले क्या बतायेंगे ?
हमारे देश को फाड़ा गया , अखबार की मानिंद ,
कि हम सब एक थें , सदियों से , कैसे भूल पायेंगे !
हम ही बस श्रेष्ठ हैं , बस इसलिए हम लड़ते रहते हैं ,
वहाँ अल्लाह -प्रभु है एक, जहाँ हम मर के जायेंगे !
हमारे पास इक सी माँ है , घर है , बच्चे इक से है !
हमारी इक सी कोशिश है , कि कैसे मुस्कुरायेंगे !
कि जिस दिन ठान लेंगे हम, की मोहरें हम नहीं इनके ,
हमारे मौलवी पंडित व नेता , कर क्या पायेंगे ?
महज भाषा से हमको जोड़ कर , लड़वा ये देते हैं !
तो आखिर अक्ल को अपनी , बता हम कब जगायेंगे ?
हमें महफूज रखनी है ये दुनिया , बच्चों की खातिर,
चलो खाते कसम हैं अब, कि इंसा बन दिखायेंगे !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें