सोमवार, 3 दिसंबर 2012

हे ईश्वर ! -{ तनु थदानी } hey eshwar-(tanu thadani)



कल  घूमते -घूमते  शहर  के एक  घर  से  जब  बात हुई 
तो  उसके  बंद  दरवाजे  ने   कुछ  राज यूँ  खोले -
चारपाई  को  ड्राईंग -रूम  से   हटा कर 
पीछे  बरामदे   में  रखना 
उतना   नहीं  था  दुखद  उसके  लिए 
जितना   दुखद  था   बाबूजी  का  अब उस  चारपाई  पर 
बरामदे  में  सोना !

सुविधानुसार  तर्क   भी बनाये  गये 
घरवालों  की तरफ  से 
कि 
ड्राईंग - रूम  के  हो-हल्ले  से  उन्हें    निजात मिली 
वहीँ  बरामदे  में  सटे  बाथरूम  होने  से 
उनकी दिनचर्या  में  सरलता  आयी !

फिर  उस  दरवाजे  ने 
मेरे कान  में   धीमे  से  बताया -
बेटा   बुरा  नहीं  है  इतना
वो तो  बाबूजी  ने   खुद  प्रस्ताव  रखा था 
नए  सोफे  की  जगह  बनाने  हेतु !

बाजू  वाले  दरवाजे  के   बारे में  बताया 
उसके   अन्दर  कमरे  तो  हैं 
मगर  नहीं  है  बरामदा ,
सो  उनके  बाबूजी आश्रम  में  रहतें  हैं !

बेटा  उनका भी  नहीं  है  बुरा 
कितना  ख्याल रखता  है  -
हर महीने  मिलने  जाता  है,
मिलने   वालों को   बताता  है -
घर  पे तो   कितने  अकेले  थे  बाबूजी 
वहाँ  तो  हमउम्र  की अच्छी  कंपनी  मिल गई ! 

मगर   अभी तक  यकीन  नहीं  आया  
कि  उस  बंद  दरवाजे   ने   मुझे  ये सब  बताया ...
हे  ईश्वर !  क्या  मेरे  बालों  में   आती  सफेदी  देख  ली  उसने ??
  






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