हाथ जोड़ कर घर - घर जा कर , वोट मांगता वादा देता !
कपड़े तेरे खोल ये देगा , अगर नहीं तू अब भी चेता !
बचपन में थी सुनी कहानी ,दाना - जाल - शिकारी वाली ,
लेकिन है अफ़सोस की उससे ,कोई अब भी सीख न लेता !
हाट हमारे , फल भी अपने , बेचेगें अब बाहर वाले ,
रोयेगा उपजाने वाला , और लुटेगा यहाँ पे क्रेता !
महंगाई है , महंगाई में , एक चीज़ ही रही अछूती ,
कल भी दो कौड़ी के थे तो ,अब भी दो कौड़ी के नेता !
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