हमने बड़े करीने से
सजा रखी हैं अपनी दूरियाँ !
कभी आत्ममुग्धता की छत पे
अकेले बैठे लाखों - करोड़ों तारों को देखते हैं
कभी नीचे आ लाखों - करोड़ों के हुजूम के जश्न में हो जाते है शामिल
लेकिन कोई नहीं होता किसी के साथ !
दिल से निः हत्थे हम
हँसते - रोते हैं नाप - तौल कर ,
क्या कोई बता पायेगा कि जाना कहाँ है ??
दोमुहें पैजामे को तर्कों की डोरी से बाँध
पूरी करते हैं जीवन- यात्रा !
मुहावरे सा व्यक्तित्व ले कर जीते है
छोड़ जाते हैं दुनिया से विदा होने से पहले
अनबूझे अक्षरों पे किस्म-किस्म की मात्रा !
चलो दूरियों से एक समझौता करते हैं -
सर्वप्रथम मैं को मारते हैं फिर हम मरते हैं !
समय की बलिष्ठ भुजाओं के आलिंगन से मुक्त
इक दूजे का हाथ थाम चलने की कोशिश करते है !
प्रिय ! हम अब भी जीते हैं
तब भी जीयेगे ,
इक दूजे की साँसों में ही हो जायेगे अमर
जब खुद ही खुद की दूरियों को पीयेगें !!
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