ना लोरियां , बाँहों का झूला , सो रहा बचपन !
न गोद है सिरहाने , न ही प्यार का आँगन !
ईटों पे सर रख , भूख ओढ़ , सो रहा बच्चा ,
ये है नहीं कोई कथा , ये देश का दर्पण !
सपनों में भी मासूम, माँ को खोजता होगा ,
हम क्यों न हों विचलित,गिरे क्यूँ न अश्रु कण!
धरती पे ही जब है नहीं ,सुकून ओं मंगल ,
हम ढ़ूंढ़ते हैं क्यूँ भला , मंगल में जा जीवन ?
न गोद है सिरहाने , न ही प्यार का आँगन !
ईटों पे सर रख , भूख ओढ़ , सो रहा बच्चा ,
ये है नहीं कोई कथा , ये देश का दर्पण !
सपनों में भी मासूम, माँ को खोजता होगा ,
हम क्यों न हों विचलित,गिरे क्यूँ न अश्रु कण!
धरती पे ही जब है नहीं ,सुकून ओं मंगल ,
हम ढ़ूंढ़ते हैं क्यूँ भला , मंगल में जा जीवन ?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें