हम नासमझ थे धर्म की , बातों पे अड़ गये !
कंगले रहें हम, नेता जी के , घर ही भर गये !
बच्चे को ना पढ़ा सके , न घर ही बनाया ,
टोपी तिलक के नाम ही , जीवन ये कर गये !
हमारी गरीबी का यही , अर्थशास्त्र है ,
लड़े बन के पशु हम, पशु खेत चर गये !
गाजा में मरने वाले या , कश्मीर में पंडित,
दोनों जगह इंसान थे , इंसान मर गये !
ईश्वर हमारा है ,और अल्लाह तुम्हारा ?
कैसे हमारी अक्ल पे ,पत्थर ये पड़ गये ??
---------------------- तनु थदानी
कंगले रहें हम, नेता जी के , घर ही भर गये !
बच्चे को ना पढ़ा सके , न घर ही बनाया ,
टोपी तिलक के नाम ही , जीवन ये कर गये !
हमारी गरीबी का यही , अर्थशास्त्र है ,
लड़े बन के पशु हम, पशु खेत चर गये !
गाजा में मरने वाले या , कश्मीर में पंडित,
दोनों जगह इंसान थे , इंसान मर गये !
ईश्वर हमारा है ,और अल्लाह तुम्हारा ?
कैसे हमारी अक्ल पे ,पत्थर ये पड़ गये ??
---------------------- तनु थदानी
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