एक बचपन था सुहाना ,बस उसी बचपन को ला दो !
माँ दो ,घर दो,फिर चमकता,सा शहर ये दो या ना दो !
मैं तरसता हिचकियों को , और तेरी रोटियों को ,
माँ मुझे या हिचकियां दे , या मुझे दे रोटियां दो !
माँ मुझे दो नींद के , कतरे कहीं से भेज दो ना ,
या तू मेरे संग हो ये ,मुठ्ठी भर अहसास ला दो !
एक अंधा सा कुआं है , ये मुआ परदेस सारा ,
गिर रहा मैं ,माँ मुझे बस, रौशनी की रस्सीयां दो !
एक खबरी ने बताया , छत टपकती है अभी तक,
माँ ओं मैं लाचार दोनों , ऐ खुदा! बारिश तो ना दो !
माँ दो ,घर दो,फिर चमकता,सा शहर ये दो या ना दो !
मैं तरसता हिचकियों को , और तेरी रोटियों को ,
माँ मुझे या हिचकियां दे , या मुझे दे रोटियां दो !
माँ मुझे दो नींद के , कतरे कहीं से भेज दो ना ,
या तू मेरे संग हो ये ,मुठ्ठी भर अहसास ला दो !
एक अंधा सा कुआं है , ये मुआ परदेस सारा ,
गिर रहा मैं ,माँ मुझे बस, रौशनी की रस्सीयां दो !
एक खबरी ने बताया , छत टपकती है अभी तक,
माँ ओं मैं लाचार दोनों , ऐ खुदा! बारिश तो ना दो !
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