हमें ना पूछना कि हँस नहीं , क्यूँ पा रहें हैं !
हमें गुजरे जमाने याद , बरबस आ रहें हैं !
किसी से मिल के बिछड़ने से मिला खालीपन ,
तमाम जश्न उसे क्यूँ नहीं, भर पा रहें हैं ?
जिन्होंने बस किया व्यापार, हर इक सूरते-हाल,
वो हमको प्यार वाला फ़लसफ़ा, समझा रहें हैं !
यूँ की तौहीन, जिस्मो से हमारा , इश्क तौला ,
हमारे इश्क पे क्यूँ यूँ क़हर , बरपा रहें हैं ?
मिलो इक बार मकसद हो भले ,बिछड़न ही सही ,
कतल उस ख्वाब का कर डाल ,जो घबड़ा रहें हैं !
कभी हिंदू मुसलमा बन के , फिरे थे यहाँ पे ,
तुम्हारे इश्क में इंसान बनते जा रहें हैं !
तू मस्जिद जा,मेरे लिये तो ख़ुदा, वो ही है बस ,
मेरे महबूब की अच्छी ख़बर ,जो ला रहें हैं !
कभी वो दिन भी न आये , कि हंसू बिन तेरे मैं ,
जमीं पे मछलियों सा देख , छटपटा रहें हैं !
हमें गुजरे जमाने याद , बरबस आ रहें हैं !
किसी से मिल के बिछड़ने से मिला खालीपन ,
तमाम जश्न उसे क्यूँ नहीं, भर पा रहें हैं ?
जिन्होंने बस किया व्यापार, हर इक सूरते-हाल,
वो हमको प्यार वाला फ़लसफ़ा, समझा रहें हैं !
यूँ की तौहीन, जिस्मो से हमारा , इश्क तौला ,
हमारे इश्क पे क्यूँ यूँ क़हर , बरपा रहें हैं ?
मिलो इक बार मकसद हो भले ,बिछड़न ही सही ,
कतल उस ख्वाब का कर डाल ,जो घबड़ा रहें हैं !
कभी हिंदू मुसलमा बन के , फिरे थे यहाँ पे ,
तुम्हारे इश्क में इंसान बनते जा रहें हैं !
तू मस्जिद जा,मेरे लिये तो ख़ुदा, वो ही है बस ,
मेरे महबूब की अच्छी ख़बर ,जो ला रहें हैं !
कभी वो दिन भी न आये , कि हंसू बिन तेरे मैं ,
जमीं पे मछलियों सा देख , छटपटा रहें हैं !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें