रूठे हुए हैं हमसे ,खुशियों के ताने- बाने !
परदेस में न मिलते ,परिवार के खजाने !
जीने के लिए तुमने,जो अपनी जमीं छोड़ी ,
ज़िंदा नहीं तू बिलकुल ,साँसे तो हैं बहाने !
छाया तो पकड़ लेगा,कोई गणित लगा के ,
खुद को पकड़ने में ही,लग जायेगें ज़माने !
बहनों का मीठा ताना,भाई का रूठ जाना ,
वो जा रहें हैं देखो , यादों में ही समाने !
कितने भी तर्क गढ़ ले ,निष्कर्ष तो यही है ,
घर में थी दाल-रोटी,बाहर भी वो ही दाने !
तुमको नहीं पता है ,चुपचाप रोती माँ है ,
दुःख ढेर सारे होंगे ,क्या बोला कभी माँ ने ?
समझे थे जिसको दौलत,ढूंढा शहर-शहर में ,
क़दमों में मिले माँ के ,जीवन के पल सुहाने !
बिटिया का चंचल बचपन,न हाट में मिलेगा ,
लौटेगा जब तलक तू ,वो भूलेगी तुतलाने !
जाना तो कब्र तक है ,दौड़ो यहाँ-वहां तुम,
आएगी अकल कब तक,अब ये तो राम जाने !
परदेस में न मिलते ,परिवार के खजाने !
जीने के लिए तुमने,जो अपनी जमीं छोड़ी ,
ज़िंदा नहीं तू बिलकुल ,साँसे तो हैं बहाने !
छाया तो पकड़ लेगा,कोई गणित लगा के ,
खुद को पकड़ने में ही,लग जायेगें ज़माने !
बहनों का मीठा ताना,भाई का रूठ जाना ,
वो जा रहें हैं देखो , यादों में ही समाने !
कितने भी तर्क गढ़ ले ,निष्कर्ष तो यही है ,
घर में थी दाल-रोटी,बाहर भी वो ही दाने !
तुमको नहीं पता है ,चुपचाप रोती माँ है ,
दुःख ढेर सारे होंगे ,क्या बोला कभी माँ ने ?
समझे थे जिसको दौलत,ढूंढा शहर-शहर में ,
क़दमों में मिले माँ के ,जीवन के पल सुहाने !
बिटिया का चंचल बचपन,न हाट में मिलेगा ,
लौटेगा जब तलक तू ,वो भूलेगी तुतलाने !
जाना तो कब्र तक है ,दौड़ो यहाँ-वहां तुम,
आएगी अकल कब तक,अब ये तो राम जाने !
कितने भी तर्क गढ़ ले ,निष्कर्ष तो यही है ,
जवाब देंहटाएंघर में थी दाल-रोटी,बाहर भी वो ही दाने !
बेहद सुन्दर...हृदयस्पर्शी....
अनु