छिपा के दोस्त इक छुड़ा , गले लगेगा अभी !
लिखूं गज़ल में बार -बार, प्यार कर के जीयो ,
वो अंधा अक्ल का क्या,पढ़ भी सकेगा ये कभी ?
बड़ी मासूमियत के साथ , वो नाराज़ है यूँ ,
बताता है कि क्यूँ न हो ,यहाँ अपने हैं सभी !
क्यूँ जिसे दिल से ज़ुदा कर , पीछे छोड़ आया ,
महकता है मेरी साँसों में ,अब भी कभी-कभी!
इसी को प्यार हैं कहते , ये ही महसूस किया ,
निकल के दिल से वो साँसों में, बस गया है तभी !
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