हम खुद से बिछड़ जाते ,जब भी ये टूट जाता !
हम सब प्रतीक्षारत हैं , आयेगी बारी इक दिन
जाने की ही टिकट ले , हर कोई यहाँ आता !
ये आदमी की हस्ती , क्या एक बुलबुला है ?
छोटा हो या बड़ा हो , सब फूट -फूट जाता !
तू है अगर जीवित तो , बन नम्रता का संगी ,
मुर्दे ही अकड़ते है , फिर तू क्यूँ अकड़ खाता ?
आती न कोई चिठ्ठी , ना कोई खबर आती ,
उस पार जो भी जाता , क्यूँ लौट कर न आता ?
ये मौत बेवजह ही , बदनाम हो चुकी है ,
हर कोई यहाँ दुःख तो ,बस जिन्दगी से पाता !
होगी बड़ी अनोखी , मस्ती भरी ये मृत्यु ,
मिलता है जो भी उससे ,जीवन को छोड़ जाता !
विश्वास मानिएं कि , बेहतर ही जगह होगी ,
जो भी वहां पहुँचता , अपनों को भूल जाता !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें