हमें मिलता है बस उतना,वो जितना छोड़ देता है !
प्रजा के तंत्र में नेता , प्रजा को तोड़ देता है !
हमीं ने चुन के भेजा सो , हमें चुपचाप है सुनना ,
वो खुल्लेआम चुन-चुन गालियाँ , बेजोड़ देता है !
हम सीधी बात जब उससे,हमारी भूख की करते ,
हमें सीधे ही वो आतंक से ही , जोड़ देता है !
हमारी बात संसद -सत्र में , खुल नहीं पाती ,
हमारी बात को इतने तहों तक , मोड़ देता है !
जो उसकी बात वाजिब थी नहीं,वो इसलिये अक्सर ,
झगड़ता,कुछ नहीं सुनता,महज इक शोर देता है !
हमारा दर्द इक सा है मगर , वो डाक्टर देखो ,
उसे कुछ और देता है , मुझे कुछ और देता है !
बुतों को तोड़ के भी वो , मुसलमां बन नहीं पाया ,
वो काफिर बात में ईमान को जो , छोड़ देता है !
प्रजा के तंत्र में नेता , प्रजा को तोड़ देता है !
हमीं ने चुन के भेजा सो , हमें चुपचाप है सुनना ,
वो खुल्लेआम चुन-चुन गालियाँ , बेजोड़ देता है !
हम सीधी बात जब उससे,हमारी भूख की करते ,
हमें सीधे ही वो आतंक से ही , जोड़ देता है !
हमारी बात संसद -सत्र में , खुल नहीं पाती ,
हमारी बात को इतने तहों तक , मोड़ देता है !
जो उसकी बात वाजिब थी नहीं,वो इसलिये अक्सर ,
झगड़ता,कुछ नहीं सुनता,महज इक शोर देता है !
हमारा दर्द इक सा है मगर , वो डाक्टर देखो ,
उसे कुछ और देता है , मुझे कुछ और देता है !
बुतों को तोड़ के भी वो , मुसलमां बन नहीं पाया ,
वो काफिर बात में ईमान को जो , छोड़ देता है !
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