ग़ज़ल
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हमने सारा शहर बसाया ,बिल्डिंग - नाले - रोड बनायें !
मगर प्रश्न ये रहा अधूरा , आम आदमी कैसे खाये ?
जंगल ने दी कुर्बानी , फिर हम क्यूँ जंगली बन बैठे हैं ,
कॉलोनी ने खेत चबायें , कैसे शहर की भूख मिटायें ?
सीमाओं की हलचल से है , हमें भला क्या लेना - देना ,
हमें हमारी नींद है प्यारी , बेशक कोई आये- जाये !
किस्मत से मानव तन पाया,किस्मत से ये देश भी पाया ,
सब पा जाते किस्मत से फिर,मेहनत से क्यूँ काम बनायें ?
कहते हैं भगवान मिलेगा , इसीलिये हर गली-गली में ,
कोई घंटा बजा रहा है , कोई ख़ुदा - ख़ुदा चिल्लाये !
ज्यों ये घोषित किया की कुछ भी ,बिना परिश्रम नहीं मिलेगा ,
धर्म के ठेकेदारों को ये , फूटी आँख सा जरा ना भाये !
चलो जगाओ खुद को ,आँखे , खोल के देखो सपने सारे ,
फल हेतु ही कार्य को करना , गीता का अध्याय बनायें !
कहते हैं भगवान मिलेगा , इसीलिये हर गली-गली में ,
कोई घंटा बजा रहा है , कोई ख़ुदा - ख़ुदा चिल्लाये !
ज्यों ये घोषित किया की कुछ भी ,बिना परिश्रम नहीं मिलेगा ,
धर्म के ठेकेदारों को ये , फूटी आँख सा जरा ना भाये !
चलो जगाओ खुद को ,आँखे , खोल के देखो सपने सारे ,
फल हेतु ही कार्य को करना , गीता का अध्याय बनायें !
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