मेरे तकिये पे मेरा हाल कल ,लिख के जो मैं सोया !
मैं तो सोया रहा बुत सा ,वो तकिया रात भर रोया !
किसी का जिस्म है मैला , किसी की आत्मा मैली ,
मेरे मौला, ये मैलेपन में हमने , खुद को क्यूँ खोया !
किया खिलवाड़ जो खुद से , छिपाये छिप नहीं पाया ,
गवाही दाग ने दे दी , दुप्पट्टा लाख था धोया !
हजारो छल किये यूँ कि , हमें कुछ और मिल जाये ,
मिला हमको वही आखिर , जो हमने बीज था बोया !
नई पीढ़ी ने हासिल कर ली दुनियां ,इक चमकती सी ,
गई है भूल कि एवज में उसने , क्या- क्या है खोया !
मैं तो सोया रहा बुत सा ,वो तकिया रात भर रोया !
किसी का जिस्म है मैला , किसी की आत्मा मैली ,
मेरे मौला, ये मैलेपन में हमने , खुद को क्यूँ खोया !
किया खिलवाड़ जो खुद से , छिपाये छिप नहीं पाया ,
गवाही दाग ने दे दी , दुप्पट्टा लाख था धोया !
हजारो छल किये यूँ कि , हमें कुछ और मिल जाये ,
मिला हमको वही आखिर , जो हमने बीज था बोया !
नई पीढ़ी ने हासिल कर ली दुनियां ,इक चमकती सी ,
गई है भूल कि एवज में उसने , क्या- क्या है खोया !