मंगलवार, 18 फ़रवरी 2025

मुनासिब

पसंद न हो तो फिर रुठना, न आज मुनासिब !
पसंद न हो जो ऐसा कुछ,नजरअंदाज  मुनासिब!

लगे जब खोलने में,गांठ, पड़ जाने का अंदेशा,
दिलों में दफ्न हो जाये,भले वो राज मुनासिब!

तुझे परदेस की आबो हवा, रंगीन मुबारक़,
हमें लागे है माँ के संग, स्याह ताज मुनासिब !

जो तेरे होठ दिल से लफ्ज़ की, इक शक्ल को तरसे,
तिरी आंखों में दिल के तार वाला, साज मुनासिब !

दिलों के पीठ पीछे जब, महज जो हाथ हैँ मिलते,
मेरा फिर हाथ छोड़ने का ही, मिजाज मुनासिब !


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