गुरुवार, 27 फ़रवरी 2025

मेरी तुकबंदी तो दिल का, खुल के हाल बताती है

मेरी पीड़ा मेरी मुर्शिद , वो ही राह दिखाती है ! 
कौन है अपना गैर कौन, ये पीड़ा ही समझाती है! 

हंसते लोगों के अंतस में, सूनापन एकांत दिखा,
खुशियाँ नई  नवेली दुल्हन, खुशी खुशी शर्माती है !

चाहे कोई हाथ मिलाये, गले मिले या साथ में खाये,
खोट अगर हो दिल में तो वो,आँखों में दिख जाती है!

दुनियां सच से लबालब है, झूठ हमारे मन में है,
प्रेम ही दिल का बाशिंदा है,सांसे आती जाती है !

रदीफ काफिये के बुर्के में, गजलें जकड़ी होती हैं,
मेरी तुकबंदी तो दिल का, खुल के हाल बताती है!

गुरुवार, 20 फ़रवरी 2025

ऐ जिंदगी


मौत से बेहतर जगह, गंर हो तो बताना !
ऐ जिंदगी, निराश हूँ, ऐसे तो नचा ना !

जो खर्च कर तुझे,जमा किये वो क्या करुं ?
ऐ जिंदगी, ये घर तेरा , मेरा न ठिकाना !

ऐ जिंदगी,तू कील है, सब रो के चल रहे,
बचने का भी तो है नहीं, कोई भी बहाना!

पागल है वो, तेरे लिए, जो मौत से लड़ता,
सच मौत का आगोश है, बाकी है फसाना !

सारी उमर आंगन तेरे, हर दुख से खेलेंगे,
बस कोख से रो के न तू ,हसती हुई आना !


मंगलवार, 18 फ़रवरी 2025

मुनासिब

पसंद न हो तो फिर रुठना, न आज मुनासिब !
पसंद न हो जो ऐसा कुछ,नजरअंदाज  मुनासिब!

लगे जब खोलने में,गांठ, पड़ जाने का अंदेशा,
दिलों में दफ्न हो जाये,भले वो राज मुनासिब!

तुझे परदेस की आबो हवा, रंगीन मुबारक़,
हमें लागे है माँ के संग, स्याह ताज मुनासिब !

जो तेरे होठ दिल से लफ्ज़ की, इक शक्ल को तरसे,
तिरी आंखों में दिल के तार वाला, साज मुनासिब !

दिलों के पीठ पीछे जब, महज जो हाथ हैँ मिलते,
मेरा फिर हाथ छोड़ने का ही, मिजाज मुनासिब !


रविवार, 16 फ़रवरी 2025

नदी तो इक नजरिया है


हमारे पाप- पुण्य -कुम्भ, स्वीकारती झुक झुक !
नदी तो इक नजरिया है, कभी होती नहीं बे रुख !

नदी को उंगलियां होती, तो वो भी थाम के पेन्सिल,
लहर पे लिख रही होती, हमारा दुख, हमारा सुख !

बना के बाँध बाटे हैँ, नदी की धार काटे हैं 
नदी फिर भी बताती है,की चलता चल, कभी न रुक !

हमें आगाज करता है, ये रुतबा यूँ समर्पण का,
नदी का अनवरत सागर से मिलना, सदियों से बे चुक !




गंर जो प्यार है्

पूरी ही है अपनी ये जमीं,गंर जो प्यार है !
मिलने पे हो आंखों में नमी, गंर जो प्यार है !

धड़कन तेरी सांसे मेरी, ऐसा वजूद हो ,
दुनियां, वहीं पे हो थमी, गंर जो प्यार है !

गलती से भी गलती हमारे, बीच में न हो,
खोजे भी, निकले न कमी, गंर जो प्यार है!

बारिश में भी देखे गये,   पूरे लिहाज से ,
सांसों में गरम बर्फ जमी, गंर जो प्यार है !

नभ में, समुद्र में या, जमीं में कहीं पे भी,
खोदे, मिल जाये हम ही , गंर जो प्यार है !