न पूछो क्या बताऊंगा , क्या डरते देखा मैंने !
बदन में आत्मा थी ,जिसको, मरते देखा मैंने !
यहाँ धोखे भी इक आदत की तरह, हो गयें जी ,
किसी को शर्म न आती , यूँ करते देखा मैंने !
वफा के जिक्र पे , पूरा शहर ही रो रहा है ,
वफा सीलन तरह,घर घर ही , झड़ते देखा मैंने !
नदी मिलती है समुन्दर में , कोई श्राप होगा ,
वो मेरे दिल की नदी को , यूँ करते देखा मैंने !
आँख भर आई मेरे धैर्य की , था दर्द इतना ,
अपने घर में जब, खुद को,बिखरते देखा मैंने !
मुझे मासूमियत मुस्कान से भी , डर है लगता ,
वो मीठे पेड़ पे विष को , निखरते देखा मैंने !
किसी को दुःख न बांटो ,है सभी के पास दुःख ही ,
सुखों की चाह में , सबको ही , लड़ते देखा मैंने !
बदन में आत्मा थी ,जिसको, मरते देखा मैंने !
यहाँ धोखे भी इक आदत की तरह, हो गयें जी ,
किसी को शर्म न आती , यूँ करते देखा मैंने !
वफा के जिक्र पे , पूरा शहर ही रो रहा है ,
वफा सीलन तरह,घर घर ही , झड़ते देखा मैंने !
नदी मिलती है समुन्दर में , कोई श्राप होगा ,
वो मेरे दिल की नदी को , यूँ करते देखा मैंने !
आँख भर आई मेरे धैर्य की , था दर्द इतना ,
अपने घर में जब, खुद को,बिखरते देखा मैंने !
मुझे मासूमियत मुस्कान से भी , डर है लगता ,
वो मीठे पेड़ पे विष को , निखरते देखा मैंने !
किसी को दुःख न बांटो ,है सभी के पास दुःख ही ,
सुखों की चाह में , सबको ही , लड़ते देखा मैंने !
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