कभी जब देखना वो ट्रेन में , झाड़ू लगायेगा !
लगा झाड़ू को वो चुपचाप, हाथों को फैलायेगा !
फिसल के शक्ल उसकी ,कद, तुम्हारी आँख नापेगी ,
तेरा बच्चा नहीं तब भी तुम्हें , क्या याद आयेगा ?
किसी के पास उसके दर्द का , मरहम नहीं होता ,
निगल के बालपन खुद का ,भला वो क्या बतायेगा ?
तुम्हारी है नहीं गल्ती , तुम्हें भी है पता ये ही ,
कि तेरी आँख लगते ही तेरा , जूता चुरायेगा !
कभी मासूमियत उसकी तुम्हें, मिल जाये ,रो लेना,
कि इससे ज्यादा तुमसे और कुछ भी, हो न पायेगा !
लगा झाड़ू को वो चुपचाप, हाथों को फैलायेगा !
फिसल के शक्ल उसकी ,कद, तुम्हारी आँख नापेगी ,
तेरा बच्चा नहीं तब भी तुम्हें , क्या याद आयेगा ?
किसी के पास उसके दर्द का , मरहम नहीं होता ,
निगल के बालपन खुद का ,भला वो क्या बतायेगा ?
तुम्हारी है नहीं गल्ती , तुम्हें भी है पता ये ही ,
कि तेरी आँख लगते ही तेरा , जूता चुरायेगा !
कभी मासूमियत उसकी तुम्हें, मिल जाये ,रो लेना,
कि इससे ज्यादा तुमसे और कुछ भी, हो न पायेगा !
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