सूख के पपड़ी, बने होंठ को , आँखों से ही धोया है !
जेहन में मेरे एक शहर था ,खुशी का अब वो खोया है !
कई नुकीलीं यादें मेरे , सीने से लग सोती हैं ,
पत्थर सा दिन पूरे दिन भर, दिल ने अक्सर ढ़ोया है !
दिल जो खुश होता मेरा तो , शब्द नाचते फिरते भी ,
शब्दों ने अक्षर अक्षर में , लेकिन जख्म पिरोया है !
एक अकेलेपन का जंगल , उस पे तेरी खामोशी ,
मेरे दिल से पूछो जो कि , पूरी रात न सोया है !
क्या होता है प्यार में ऐसा , कोई मुझे बताये तो ,
दुःख दूजे का मिला के खुद में ,दिल क्यूँ मेरा रोया है ?
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