जब नयी सदी की नयी कथा , कहता हूँ आँखें रोती हैं !
विश्वास नहीं होता है कि , ऐसी भी नारी होती है !
परदे ही साक्षी होते हैं , हर एक गुनाहों के अक्सर,
घर की लक्ष्मी ,घर के भीतर,जब गैरों के संग सोती है!
इक दर्द गुजरता रहता है , चुपके से जब पूरे घर में ,
गमले- टेबल- बिस्तर तक में , खामोशी जिन्दा होती है !
हम अभिव्यक्ति में बिम्ब टांक, बातें करते हैं घुमा-फिरा,
बातों में वज़न तो आता है , पर बात बिम्ब में खोती है !
क्यूँ नहीं मानते सीधे से , हम फंसे पतन के भंवर में हैं ,
सब चमक रहें, पर नकली हैं , ये जितने हीरे -मोती हैं !
अपराधी वो जो पकड़ गया ,वरना हम सब अपराधी हैं,
हर एक रुह, जो ईश्वर है , मैली काया को ढ़ोती है !
विश्वास नहीं होता है कि , ऐसी भी नारी होती है !
परदे ही साक्षी होते हैं , हर एक गुनाहों के अक्सर,
घर की लक्ष्मी ,घर के भीतर,जब गैरों के संग सोती है!
इक दर्द गुजरता रहता है , चुपके से जब पूरे घर में ,
गमले- टेबल- बिस्तर तक में , खामोशी जिन्दा होती है !
हम अभिव्यक्ति में बिम्ब टांक, बातें करते हैं घुमा-फिरा,
बातों में वज़न तो आता है , पर बात बिम्ब में खोती है !
क्यूँ नहीं मानते सीधे से , हम फंसे पतन के भंवर में हैं ,
सब चमक रहें, पर नकली हैं , ये जितने हीरे -मोती हैं !
अपराधी वो जो पकड़ गया ,वरना हम सब अपराधी हैं,
हर एक रुह, जो ईश्वर है , मैली काया को ढ़ोती है !
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