मंगलवार, 27 मई 2014

tanu thadani तनु थदानी वरना हम सब अपराधी हैं

जब नयी सदी की नयी कथा , कहता हूँ आँखें रोती हैं !
विश्वास  नहीं  होता  है  कि , ऐसी  भी  नारी  होती है !

परदे ही  साक्षी  होते हैं , हर एक  गुनाहों के अक्सर,
घर की लक्ष्मी ,घर के भीतर,जब गैरों के संग सोती है!

इक  दर्द  गुजरता  रहता है , चुपके से  जब पूरे घर में ,
गमले- टेबल- बिस्तर तक में , खामोशी जिन्दा होती है !

हम अभिव्यक्ति में बिम्ब टांक, बातें करते हैं घुमा-फिरा,
बातों में वज़न तो आता है , पर बात बिम्ब में खोती है !

क्यूँ नहीं मानते सीधे से , हम फंसे पतन के भंवर में हैं ,
सब चमक रहें, पर नकली हैं , ये जितने हीरे -मोती हैं !

अपराधी वो जो पकड़ गया ,वरना हम सब अपराधी हैं,
हर  एक  रुह, जो  ईश्वर  है , मैली  काया को ढ़ोती है !

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