मत पूछ क्यूँ उकड़ू लेटे हैं !
दीवाल ने कमरे फेंटे हैं !
ग़ज़लें मेरी मेरे दुःख का ,
पूरा संसार समेटे है !
उकताई यूं अब तन्हाई,
खामोशी लिये लपेटे है !
हर मिनट की साँसे गिनते हैं ,
हम इतने तन्हा बैठे हैं !
मेरे घर बीच दीवाल उठी ,
क्यूँ कि मेरे दो बेटे हैं !
सुंदर रचना....
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