सोमवार, 6 जनवरी 2014

tanu thadani करुं मैं क्या तनु थदानी


मचलता मन भी जब जब, पत्थरों सा जड़ है लगता !
तभी गजलों  के घर में ,आंसुओ का  दर  है  लगता !

करे  बातें   तमाम ,   मुझसे   मेरी   तन्हाई,
बताती है कि मेरा दिल ही ,उसको घर है लगता !

क्यूँ मेरी आंखे न गीली हुईं , खुद से बिछड़ के ,
क्यूँ मेरा जिस्म सन्नाटे से,मुझको तर है लगता !

मेरी  तन्हाई फिर मुझसे ,लिपट के थरथराई  ,
बोली रो के  ,सन्नाटे से उसको डर है लगता !

हकीकत ये है कि मैं , तप रहा हूँ , जल रहा हूँ ,
करुं मैं क्या जो मेरा जिस्म, ठंडा गंर है लगता !

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