जी हां ! मैं दोस्त बनाता हूं , तभी तो धोखे खाता हूं !
मैं बुद्धु बन के हूं रहता , तभी तो सबको भाता हूं !
किसी ने अपनापन लूटा , किसी ने अंतस को लूटा ,
नहीं कुछ घटता रत्ती भर, मैं चाहे लुट लुट जाता हूं !
किसी के अपने ही बच्चे,छिटक के बिदक के हैं रहते,
वो बच्चे साथ थे मेरे ,क्यूँ कि मैं ,बच्चा बन पाता हूं !
किसी का हाथ मिलाना,गले लगाना,झेल चुका हूं सब,
कभी हमदर्दी मत रखना,समझ मैं सब कुछ जाता हूं !
यहाँ सब खोद के खाई, खुद ही गिरते , रोते हैं रहते,
गिरे गढ्ढे में इक इक कर, मैं चाहे लाख बताता हूं !
यहाँ पे प्रेम का मतलब,आलिंगन व चुंबन बिस्तर है ,
तभी तो लोग हैं हँसते मुझ पे,मैं तो कृष्ण पढ़ाता हूं !
अरे ईश्वर ! न तू इतरा , मैं तेरे खातिर ना आता ,
मेरी मां खुश हो जाती है , तभी तो मन्दिर आता हूं !
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