कोई भी बुत मेरे साहेब को , ना साकार कर पाये !
मुझे तो जर्रे- जर्रे में , मेरा साहेब नजर आये !
न हमसे पूछ कैसे खुद को ही , हम नोंच खाते हैं ,
धरम का मांस हम में भूख , आदम वाली ललचाये !
बना मंदिर , बना मस्जिद ,जो करते चापलूसी हम ,
मेरा साहेब हमारी अक्ल पे , हँस - हँस के मुस्काये !
भला कोई पिता क्यूँ चाहेगा कि , उसका ही बच्चा ,
करम को छोड़ - छाड़ कर , पिता के गुण भला गाये !
किया जीवन को ही पैदा ,मगर मस्ती नहीं पायी ,
ना अब तक सम हुये हम सब ,ना खुद को भोग ही पाये !
मेरे साहेब ने हम सबको बताओ , क्यूँ यहाँ भेजा ?
भला क्या इसलिये कि सारी बगिया ख़ाक कर जायें !
वो हमसे प्यार है करता ,वो सब तक आ नहीं पाता ,
तभी तो माँ बनाई ताकि , हर इक तक पहुँच पाये !
मुझे तो जर्रे- जर्रे में , मेरा साहेब नजर आये !
न हमसे पूछ कैसे खुद को ही , हम नोंच खाते हैं ,
धरम का मांस हम में भूख , आदम वाली ललचाये !
बना मंदिर , बना मस्जिद ,जो करते चापलूसी हम ,
मेरा साहेब हमारी अक्ल पे , हँस - हँस के मुस्काये !
भला कोई पिता क्यूँ चाहेगा कि , उसका ही बच्चा ,
करम को छोड़ - छाड़ कर , पिता के गुण भला गाये !
किया जीवन को ही पैदा ,मगर मस्ती नहीं पायी ,
ना अब तक सम हुये हम सब ,ना खुद को भोग ही पाये !
मेरे साहेब ने हम सबको बताओ , क्यूँ यहाँ भेजा ?
भला क्या इसलिये कि सारी बगिया ख़ाक कर जायें !
वो हमसे प्यार है करता ,वो सब तक आ नहीं पाता ,
तभी तो माँ बनाई ताकि , हर इक तक पहुँच पाये !
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