आखिर क्यूँ ? {हे ईश्वर -3 } तनु थदानी tanu thadani
शातिर दिमाग से खेलते हैं ,
नादान दिल से खेलते हैं ,
बेवकूफ शरीर से खेलते हैं ,
हम खुद के भीतर भी
इन तीनो स्थितियों को
अपनी मृत्यु तक झेलते है !
हम नहीं हैं किसी भी पशु के विकास - यात्रा के यात्री
हमने खुद के भीतर पशुता का विकास किया है !
बेहतर हैं पशु हमसे
कि स्पष्ट है उनका लक्ष्य -भोजन ,
मगर हमारे लक्ष्य तक नहीं हैं निश्चित !
हम कपड़े ओढ़ कर शर्मिन्दा हैं ,
मृत भावनाओं के साथ ज़िंदा हैं ,
भीड़ मे अकेलेपन के साथ हैं ,
अकेलेपन में यादों से खेलते हैं !
मात्र साँसों से दोस्ती के लिये ,
रोज नया आवरण , खुद के ऊपर बेलते हैं !
हे ईश्वर !
क्यूँ है हमारी जीवन - यात्रा अनिश्चित ?
क्यूँ हमारे साथ चलती एक निन्दा है ?
क्यूँ हैं बनाते खुद के भीतर खाई अहंकार की ?
आखिर क्यूँ खुद ही को उसके भीतर ढकेलते हैं ??
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