सब पूछते इस उम्र तक , कितना लिया कमा ?
मेहनत की रोटी घर में है , इज्ज़त की है शमां !
तुलना तो कभी कर नहीं , अपनी इमारत से ,
मैंने तो घर बनाया पर , तूने केवल मकां !
जेबें गरम , बिस्तर नरम , फिर छटपटाहट क्यूँ ?
सुख मिल सके सब खोजते , ऐसी कोई दुकां !
मैं संत नहीं हूँ मगर , ये जानता हूँ मैं ,
सब छोड़ कर के जाओगे , जो कुछ किया जमा !
गिन भी न सका कोई , मेरे घर की कमाई ,
मुझको कमाया माँ ने ओं , मेरी कमाई माँ !
बेहतरीन रचनाएं हैं आपकी ....फोलोअर्स को भी स्थान दीजिये ब्लॉग पर ताकि आपकी हर पोस्ट लोगो तक पहुंचे
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