सहिष्णु हमको जग वाले, ऐसे ही न कहते हैं !
संग हमारे सांप व बिच्छू, मेरे ही घर रहते हैं !
पांच बार लाउडस्पीकर पर, गंदी चींखे वो मारे,
पूरे हिन्दुस्तान के वासी, बेबस से बस सहते हैं !
तीन बीबीयां तेरह बच्चे, हर घर एक कबीला है,
मासूमों के जेहन तक, जेहादी कीड़े बहते हैं !
सोचो इनकी सोच सैतालिस सी ही है,सर्तक रहो,
सनातनी भूमि पर,गिद्ध सी, नजरें गाड़े रहते हैं!
सौ हैँ नदियाँ, एक भी उर्दू अरबी इनके नाम नहीं,
देश हमारे बाप का है, हम,ठोक के सीना कहते हैं !
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