हाँ ! दिल के कूड़ेदान से भी ,छांटता हूँ प्रेम !
तू विष परोस तो बदल के ,चाटता हूँ प्रेम !
मुझसे नहीं डरो मैं कुछ भी , मांगता नहीं ,
मैं तो हूँ इक फ़क़ीर सदा , बांटता हूँ प्रेम !
तू खेती नफरतों की भले , कर के देख ले ,
तेरे ही खेत आ के देख , काटता हूँ प्रेम !
जब गिर पड़ो गड्ढ़े में तो , मुझको पुकारना ,
मैं वासना के गड्ढ़ों में ,पाटता हूँ प्रेम !
बदरंग दीवारों को कभी , छोड़ता नहीं ,
अच्छी लगे दीवार सो मैं , साटता हूँ प्रेम !
तुम भी तो संत हो अगर ,दाढ़ी नहीं तो क्या ?
खुल के कहो की नेक हूँ औं , बांटता हूँ प्रेम !
तू विष परोस तो बदल के ,चाटता हूँ प्रेम !
मुझसे नहीं डरो मैं कुछ भी , मांगता नहीं ,
मैं तो हूँ इक फ़क़ीर सदा , बांटता हूँ प्रेम !
तू खेती नफरतों की भले , कर के देख ले ,
तेरे ही खेत आ के देख , काटता हूँ प्रेम !
जब गिर पड़ो गड्ढ़े में तो , मुझको पुकारना ,
मैं वासना के गड्ढ़ों में ,पाटता हूँ प्रेम !
बदरंग दीवारों को कभी , छोड़ता नहीं ,
अच्छी लगे दीवार सो मैं , साटता हूँ प्रेम !
तुम भी तो संत हो अगर ,दाढ़ी नहीं तो क्या ?
खुल के कहो की नेक हूँ औं , बांटता हूँ प्रेम !
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