लुंगी-धोती-टोपी ये सब ,हमको खायेगी जरुर !
वेश - भूषा ही कहर , इक रोज ढायेगी जरुर !
जब सभी पंडित कुरान, पढ़ जो लेंगे एक बार ,
मस्जिदों पे भजन कोयल ,जा के गायेगी जरुर !
तुम कभी भजनों को अरबी-फारसी में गाओ तो ,
ये अदा अल्लाह को , वादा है भायेगी जरुर !
मेरे मंदिर में मदीने की छवि , रख के तो देख ,
तब वहां के बुत में , मुस्कान आयेगी जरुर !
गुनगुना कर देख मस्जिद में,भजन की पंक्तियाँ ,
उस मदीने तक तेरी , आवाज़ जायेगी जरुर !
जिद यही बस एक है ,वतन से ही पहचान हो ,
मेरी कोशिश इक न इक दिन, रंग लाएगी जरुर !
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