जीवन साँसों का चक्र बना , फिर मकसद से ब्यापार हुआ !
पिछली पीढ़ी से आज तलक , हर इक के संग हर बार हुआ !
दिल में गड्ढें ,सिर में छुड़ियाँ ,बाहों में गंध है अजगर सी ,
घुलती साँसों में हया नग्न , इस कलयुग में यूँ प्यार हुआ !
हे कान्हा ! तुझे प्रतीक बना , सब खेल खेलते नाजायज़ ,
मीरा ! तेरा दीवानापन , असमंजस से दो - चार हुआ !
तब हस्ती गई हाशिये पे ,हे ईश्वर ! किया जो इश्क तुझे ,
बस खोया - खोया रहता हूँ , सब कहतें हैं बेकार हुआ !
मैं बेकारी में खुश इतना , सब लोक-लाज भी भूल गया ,
सब कार्य करें लूटने का , मैं लुटने को तैयार हुआ !
सब घूर रहें थें कब -कैसे , मैं दुख से यूँ कंगाल हुआ ,
गुम हुआ खजाना दुख का ,जब से ईश्वर मेरा यार हुआ !
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