ये सांसे व्यस्त हैं इक ढ़ोग में , कुछ ना बतायेंगी !
क्यूँ इनसे प्यार हैं करते , ये हमको मार जायेंगी !
दिमागी गंदगी को पूर्णतः बाहर निकालो फिर,
कड़कती धूप सोखेगी , या बारिश लील जायेगी !
बदन के मैल को चाहे छिपाओ, साफ कपड़ों में ,
मगर ये गंध तो है बेवफा , सबको बतायेगी !
हमारी भूख में शामिल है जो,जिस्मों की भूख भी ,
अगर हम बच न पायें ,हम सबों को ,खा ये जायेगी !
नहीं पूरी तरह अखबार को तुम, पढ़ न पाओगे ,
ये खबरें आजकल की देखना , इतना रुलायेंगी !
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