दरअसल होता यूं है , जब भी हम,पैसे कमाते हैं !
महज़ पैसे कमा , इज्जत कमाना , भूल जाते हैं !
हमें बिलकुल न भाती गंदगी ,कचरे की ये दुनियां,
तभी तो खिड़कीयों पे , मोटा सा ,पर्दा लगाते हैं !
खुदा ने बख्शी है खुशबू ,हवा पानी की नेमत जो ,
हम बोतल बंद में , उन नेमतों को , बेच आते हैं !
कभी सच सुनना हो मुझसे,तो ठेके आ के ही मिलना,
सभी कहते हैं दारू पी के ही , सच बड़बड़ाते हैं !
हमारी दोस्ती दो पैग से , बनती बिगड़ती है ,
तभी तो जिंदगी भर, जिंदगी को , छटपटाते हैं !
तेरी जीने की खातिर, की गई, चालाकियां प्रपंच,
तुम्हें बस दुःख में ही रहना , तेरी फितरत बताते हैं !
कभी कब्रों के पास बैठना , औकात जानोगे ,
बनाते हैं महल लेकिन,वही छे फुट ही पाते हैं !
यहाँ पे मौत पे रोना , महज़ इक रस्म है बंधु ,
ओं सीना तान के , हम आदमी हैं , ये बताते हैं !
मेरी ग़ज़लों ने जिसको भी किया ,नंगा, पलट कर के ,
मैं हूं उन जैसा ही , ये कह के वो , दर्पण दिखाते हैं !
हमें क्या नींद- चैन- शांति , पैसों से मिलती है ?
समझ में ये नहीं आता , कि पैसे क्यूँ कमाते हैं ??
महज़ पैसे कमा , इज्जत कमाना , भूल जाते हैं !
हमें बिलकुल न भाती गंदगी ,कचरे की ये दुनियां,
तभी तो खिड़कीयों पे , मोटा सा ,पर्दा लगाते हैं !
खुदा ने बख्शी है खुशबू ,हवा पानी की नेमत जो ,
हम बोतल बंद में , उन नेमतों को , बेच आते हैं !
कभी सच सुनना हो मुझसे,तो ठेके आ के ही मिलना,
सभी कहते हैं दारू पी के ही , सच बड़बड़ाते हैं !
हमारी दोस्ती दो पैग से , बनती बिगड़ती है ,
तभी तो जिंदगी भर, जिंदगी को , छटपटाते हैं !
तेरी जीने की खातिर, की गई, चालाकियां प्रपंच,
तुम्हें बस दुःख में ही रहना , तेरी फितरत बताते हैं !
कभी कब्रों के पास बैठना , औकात जानोगे ,
बनाते हैं महल लेकिन,वही छे फुट ही पाते हैं !
यहाँ पे मौत पे रोना , महज़ इक रस्म है बंधु ,
ओं सीना तान के , हम आदमी हैं , ये बताते हैं !
मेरी ग़ज़लों ने जिसको भी किया ,नंगा, पलट कर के ,
मैं हूं उन जैसा ही , ये कह के वो , दर्पण दिखाते हैं !
हमें क्या नींद- चैन- शांति , पैसों से मिलती है ?
समझ में ये नहीं आता , कि पैसे क्यूँ कमाते हैं ??
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें