रविवार, 3 नवंबर 2024

भरा ग्लेशियर ग़म का ,गले लगाते झर झर गलता है!

भरा ग्लेशियर ग़म का ,गले लगाते झर झर गलता है! 
हाल चाल ही तो पूछा था,मन क्यूं शाम सा ढलता है? 

मेरा समझौता तो मेरे, चाल - चलन से ऐसा है, 
मैं उसे छिपा के चलता हूँ, वो मुझे छिपा के चलता है! 

हंसते चेहरे पे आंसू दे, जख्म पे मेरे नमक सी थी, 
वो जीवनसाथी नाम लिये,जो रही वही तो खलता है! 

जो खोजे परिभाषित सुख को,गढ़ के सुख की परिभाषायें, 
अंदर न उसके सुख पलता,न सुख से कभी वो पलता है! 

जब जब भी जेब तलाशी केवल, लम्हे निकले रुखे सूखे! 
किया प्रेम तो प्रेम क्यूं मांगा, ऐसा प्रेम न फलता है ! 









गुरुवार, 24 अक्तूबर 2024

हो के भी नाराज मैं आखिर कर क्या लूंगा?

बात नहीं थी कुछ भी, मसला, खड़ा हो गया ! 
खून का रिश्ता इकदम चिकना, घडा़ हो गया! 

बेटा  बिना मशवरे ही सब निर्णय  लेता, 
खुश ही हो लूं  की अब तो वो; बड़ा हो गया! 

हो के भी नाराज मैं आखिर कर क्या लूंगा?
दर्द पिता का छलका, घाव, हरा हो गया! 

ढलते सूरज ने मुझको  औकात बताई, 
मुझसे मेरी छाया का कद, बड़ा हो गया! 
-------------------------- तनु थदानी

शनिवार, 19 अक्तूबर 2024

दुख की बात है ये तो


चश्मा काला पहन जो बोले, हरदम, रात है ये तो! 
पर पीड़ा से परे जो अंतस , पशु की जात है ये तो! 
 
साथ हैं खाते -पीते- चलते, रिश्तों की गठरी ले, 
जरा गिरे क्या, हंस देते हैं, सीधी घात है ये तो  ! 

वर्षों लड़ हिस्सा करवाया, खुश काहे तू होता, 
अलग हुए, दो हुई रसोई, तेरी मात है ये तो  ! 

समय सही है अपना भी तो,सभी ही अपने हैं जी, 
खुशी मनाऊं कैसे,समझो, दुख की बात है ये तो  ! 

तमाशा कौन करे,

दुःखी तो खुश  दिखे वो, इसलिए ही मुस्कुराता है! 
कहीं तुम जान न जाओ, सो तुमको भी हँसाता है! 

खिलौने छोड़ मेरे दिल से जो, खेला है तू, तब से, 
मेरे भीतर का बच्चा, तिलमिलाता, टूट जाता है! 

सूकूं तो नींद लंबी में ही है , जो मौत कहलाती
सभी दुख जागने में हैं, यही जीवन बताता है  ! 

यहाँ ये जान के साजिश में शामिल,खुद की छाया है, 
उसी के साथ में फिर भी, पूरा जीवन बिताता है! 

तमाशा कौन करे, घर न बिखरे, इसलिये तनु  , 
सलीके से सभी गम , मुस्कुराहट में छिपाता है  ! 










शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2024

सैफई वाले नाच को, संस्कृति बताया,


सैफई वाले नाच को, संस्कृति बताया, 
वोटों के लिए रामभक्त, मार गिराया  ! 

मसला नहीं था ये कि, वो पुल क्यूँ ढ़ह गया, 
ऐसा जो बना, वैसा, पैसा क्यूँ नहीं आया  ?? 

अफसर थे परेशान कि, बाकी का क्या लिखें, 
उन चार में था तीन तो, कागज पे बनाया  !

हम तो डकैत थे, यूँ ही चुनाव लड़ के फिर, 
डकैती को राजनीति में, व्यवहार कराया! 

ये ही है खूबसूरती,समाजवाद की, 
पूरे घर व रिश्तेदार को, चुनाव लड़वाया  ! 

----------------------  तनु थदानी

बुधवार, 21 अगस्त 2024

सुर खुद का न लगे, कहे गाना खराब है !


सुर खुद का न लगे, कहे गाना खराब है ! 
श्रोता ही न बेहतर, ये, बहाना खराब है  ! 

चालाकियाँ व हेरफेर,कर के फंसा स्वयं, 
अब बीच में भगवान को, लाना खराब है  ! 

इज्जत न मिली क्यों कि, सब को पता था, 
पैसे का उसके पास यूँ, आना खराब है  ! 

कर के गबन थी थोक की, दुकान खोल दी, 
 कितना किया कैसे ये,  बताना खराब है  ! 

उसने कहा कि सबको ,मिला के किया गबन, 
फिर थाना या फिर कोर्ट में, जाना खराब है  ! 

दे के उधारी जब वसूली, हो नहीं पायी , 
अब कह रहा हैं सबको, जमाना खराब है  ! 
---------------------- तनु थदानी





सोमवार, 12 अगस्त 2024

शातिर है आबादी बढ़ा, शरियत पे अड़ेगा!

शातिर है आबादी बढ़ा, शरियत पे अड़ेगा! 
गरं फंस गया तो मुख से, संविधान झड़ेगा! 

हिन्दू कहीं कोई पिट रहा ,वो मानता नहीं, 
बुद्धिजीवी है  इस बात पे ,कुतर्क करेगा! 

जब तक  अकारण ही , खुद नहीं पिटता,  
बुद्धिजीवी है, सो कुटने के ,बाद  डरेगा ! 

विश्व में बस एक ही, बदनाम कौम है, 
जो आश्रय देगा, उसी के हाथों मरेगा! 

जिसकी भी जमीं पे गया ,संस्कृति  खा गया, 
नीयत में बस जेहाद है, तो क्यों न लड़ेगा  ?